पानी की किल्लत से भीषण गर्मी में परेशान बेजुबान वन्यजीव, विशालकाय भालू ने आबादी में घुसकर मचाया उत्पात
पानी की किल्लत से भीषण गर्मी में परेशान बेजुबान वन्यजीव, विशालकाय भालू ने आबादी में घुसकर मचाया उत्पात
लालकुआँ। उत्तराखंड के वन क्षेत्रों में भीषण गर्मी में पानी की किल्लत के चलते बेजुबान वन्य जीवों को पानी की तलाश में इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। जिसके कारण यहां आएदिन मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं होती रहती हैं।ताजा मामला लालकुआँ क्षेत्र का है यहां आबादी में घुसे एक विशालकाय भालू ने जमकर उत्पात मचाया। बताया जा रहा है कि भालू पानी की तलाश में रिहायशी इलाके में आया था जिसका बाद में वन विभाग की टीम ने रेस्क्यू किया। इस दौरान क्षेत्र में अफरा-तफरी और दहशत का माहौल रहा।भीषण गर्मी के बीच जंगलों में वन्यजीवों के लिए पानी का संकट भी खड़ा हो गया है। ऐसे में वन्यजीव जंगलों से निकलकर पानी की तलाश में आबादी वाले क्षेत्र में पहुंच रहे हैं। जिसके चलते मानव और वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इससे जहां एक तरफ लोगों की जान आफत में है। वहीं वन्यजीवों की जान का खतरा है।
बताया जा रहा है कि तराई केंद्रीय वन प्रभाग के टांडा के जंगल से पानी की तलाश में एक भालू नेशनल हाईवे पार कर लालकुआँ क्षेत्र के आबादी वाले इलाके में पहुंच गया। आधी रात को रिहायशी क्षेत्र में भालू ने खूब उत्पात मचाया जिससे लोग दहशत में आ गए। आबादी वाले क्षेत्र में उत्पात मचाने के बाद भालू रेलवे के स्लीपर बनाने वाली स्लीपर फैक्ट्री में घुस गया। जिससे फैक्ट्री में मौजूद श्रमिक भालू को देखकर डर गए और वहां अफरा-तफरी मच गई। वहीं स्थानीय लोगों ने तत्काल मामले की जानकारी वन विभाग को दी। सूचना मिलते ही वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची और भालू को बामुश्किल ट्रेंकुलाइज कर वापस जंगल में छोड़ दिया गया।
बताया जा रहा कि रात को करीब एक बजे भालू स्लीपर फैक्ट्री और आईओसी डिपो के बीच झाड़ियां में छुपा हुआ रहा। जबकि वन विभाग की टीम सड़क और रेलवे ट्रैक पर डटी हुई थी। वन क्षेत्राधिकारी चंदन अधिकारी ने बताया कि विभाग की रेस्क्यू टीम ने भालू को ट्रेंकुलाइज कर जंगल में छोड़ दिया।
यहां बता दें कि भीषण गर्मी के चलते जंगलों में पानी की भारी दिक्कत होने के चलते जंगली जानवर आबादी वाले क्षेत्र का रुख कर रहे हैं। जिससे क्षेत्र में अक्सर मानव और वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में इजाफा देखा जा रहा है। लेकिन वन विभाग के जिम्मेदार इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
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