बड़ी खबर : निकाय चुनाव उच्च न्यायालय में बतायी गयी तिथि तक हो पाने पर फिर उठे सवाल, विधेयक पारित होने की जगह प्रवर समिति को भेजा

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बड़ी खबर : निकाय चुनाव उच्च न्यायालय में बतायी गयी तिथि तक हो पाने पर फिर उठे सवाल, विधेयक पारित होने की जगह प्रवर समिति को भेजा

देहरादून। उत्तराखंड के 99 नगर निकायों के चुनाव एक बार फिर से टाले जाने की संभावना जताई जा रही है। विधानसभा में नगर निकायों से संबंधित विधेयक पारित होने की बजाय प्रवर समिति को भेज दिया गया है। प्रवर समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही अब प्रदेश में चुनावी प्रक्रिया आगे बढ़ सकेगी। इसे राज्य सरकार का चुनाव टालने का एक उपक्रम भी माना जा रहा है। वहीं अब तक जनता-जनार्दन के बीच चुनावी ताल ठोक रहे प्रत्याशी भी कुछ मायूस से दिखाई दे रहे हैं।

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बता दें कि निकाय चुनाव कराने के लिये नगर निकायों में ओबीसी आरक्षण को लागू करना बड़ा विषय है। इसके लिए राज्य सरकार ने सदन में नगर पालिका और नगर निगमों के अधिनियम में संशोधन का विधेयक पेश किया था। लेकिन विधायकों के विरोध के कारण इस विधेयक को प्रवर समिति को भेज दिया गया है। समिति को एक महीने में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। इसके बाद ही विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत हो सकते हैं। इसमें और अधिक समय भी लग सकता है।

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वहीं विधेयक पास होने के बाद जिलाधिकारी अपने-अपने जिले के निकायों में ओबीसी आरक्षण को लेकर नोटिफिकेशन जारी करेंगे। इसके बाद आपत्तियों और सुझावों की सुनवाई की जाएगी और जिलाधिकारी अपनी रिपोर्ट शासन को भेजेंगे। इसके बाद शासन राज्य निर्वाचन आयोग को चुनाव की संस्तुति भेजेगा, जिसके बाद निर्वाचन आयोग चुनाव के लिये नोटिफिकेशन जारी करेगा। इन सभी प्रक्रियाओं में ज्यादा समय लग सकता है। जबकि राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में 25 अक्टूबर तक चुनाव सम्पन्न कराने की बात कही है। ऐसे में इस अवधि में चुनाव हो पाने की संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। इसको लेकर सरकार की नियत पर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं।

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विपक्षी दल के लोगों का कहना है कि फिलहाल सरकार हार के डर से निकाय चुनाव करवाने से बचती दिखाई दे रही है।वहीं शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि चूंकि मामला प्रवर समिति के पास चला गया है। इसलिए समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही आगे का निर्णय लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार की कोशिश है कि सत्रावसान न हो, ताकि प्रवर समिति की रिपोर्ट आने के बाद विशेष सत्र में विधेयक पारित किए जा सकें।