उद्योगपतियों की मनमानी नीतियां युवाओं पर पड़ रहीं भारी, सिडकुल में खुलेआम उड़ाई जा रही हैं श्रम कानूनों की धज्जियां
उद्योगपतियों की मनमानी नीतियां युवाओं पर पड़ रहीं भारी, सिडकुल में खुलेआम उड़ाई जा रही हैं श्रम कानूनों की धज्जियां
संवाददाता ऐजाज हुसैन
रूद्रपुर। सिडकुल में सरकार से सब्सिडी लेकर अपने-अपने उद्योगों को स्थापित कर मोटा मुनाफा कमा रहे उद्योगपति युवाओं की उम्मीदों पर कुठाराघात कर रहे हैं। सिडकुल में स्थापित उद्योगों में खुलेआम श्रम कानूनों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इन बेलगाम फैक्ट्री प्रबंधकों पर अंकुश लगाने में श्रम विभाग और जिला प्रशासन पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहा है अथवा जानबूझकर कार्रवाई नहीं कर रहा है जिसको लेकर स्थानीय युवाओं में निराशा व्याप्त है।
बताते चलें कि वर्ष 2003 के आसपास पंतनगर क्षेत्र में सिडकुल की स्थापना हुई थी। करीब 3,233 एकड़ क्षेत्रफल में फैले सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र में सैकड़ों इकाइयां स्थापित होने के बाद उनमें उत्पादन शुरू हुआ। सिडकुल में उद्यमियों को फैक्ट्रियां लगाने के लिए सरकार द्वारा इस शर्त पर सब्सिडी के साथ सस्ती जमीनें दी गयी थीं कि वह अपने उद्योगों में स्थानीय युवाओं को रोजगार देंगे। लेकिन बड़े दुर्भाग्य की बात है कि यहां उद्योग लगाने के बाद उद्योगपति तो मालामाल हो गए लेकिन यहां के युवाओं को रोजगार के नाम पर सिर्फ लॉलीपाप ही दिया गया। सिडकुल में 70 प्रतिशत स्थानीय रोजगार का नियम यहां केवल नाममात्र के लिए ही लागू हुआ है और जिन उद्योगों ने स्थानीय युवाओं को रोजगार दिया भी है तो उन्हें ठेकेदारी प्रथा का दंश झेलना पड़ा है।
आज भी हजारों श्रमिक सिडकुल में ठेकेदारी प्रथा के अंतर्गत काम करने को मजबूर हैं। सबसे बड़ी बिडम्बना यह है कि सिडकुल में पढ़े लिखे शिक्षित युवाओं से भी मजदूरों जैसा काम लिया जाता है। इसके साथ ही सिडकुल की तमाम फैक्ट्रियों में श्रम कानूनों की पूरी तरह से अनदेखी की जा रही है। निर्धारित समय से अधिक समय तक उनसे काम लिया जाता है। आरोप है कि अप्रशिक्षित श्रमिकों से हेवी मशीनों पर काम करवाकर उनकी जान को जोखिम में डालने का काम भी किया जा रहा है। जिसके चलते सिडकुल में तमाम श्रमिक अब तक अपनी जान गवां चुके हैं और तमाम श्रमिक गंभीर रूप से घायल होकर अपाहिज सा जीवन जीने को मजबूर हैं।
इसका जीता जागता उदाहरण हाल ही में डॉल्प्फिन कंपनी में सामने आया जहां मात्र एक माह पहले काम पर आये श्रमिक को जबरन लिफ्ट मशीन पर तैनात कर दिया गया। अप्रशिक्षित होने के चलते उक्त श्रमिक काम करते समय लिफ्ट में फंस गया जिससे उसकी मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गयी। इससे पूर्व में भी सिडकुल की फैक्ट्रियों में ऐसे तमाम हादसे घटित हो चुके हैं। जिनमें श्रमिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी है अथवा गंभीर रूप से घायल हुए हैं।
वहीं ऐसे अधिकांश मामलों में देखा गया है कि हादसों के बाद फैक्ट्री प्रबंधन मुआवजा देने के बजाय मामले में लीपापोती करता नजर आता है। इतने जोखिमों के बावजूद सिडकुल में काम करने वाले युवाओं की नौकरी कब तक रहेगी इसकी भी कोई गारंटी नहीं है।
सिडकुल में कई फैक्ट्रियां अपने श्रमिकों को निकालकर यहां से रातों-रात सामान समेट कर फरार हो चुकी हैं और सब्सिडी डकारने के बाद कई फैक्ट्रियों ने अपने श्रमिकों को उनके हाल पर छोड़ दिया है। यह सिलसिला लगातार जारी है। कोरोना काल में लॉकडाउन के बाद बंद पड़ी कई फैक्ट्रियों में अभी तक ताले लटके हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कई फैक्ट्रियों को तो अपनी इकाईयां को बंद करने के लिए कोरोना आपदा का एक बहाना मिल गया। बताया जा रहा है कि कई फैक्ट्रियां तो सिडकुल से पूर्व में ही पलायन का मन बना चुकी थीं। फिलहाल सिडकुल की कई फैक्ट्रियां नये युवाओं को रोजगार देने के बजाय अपने पुराने श्रमिकों को भी फैक्ट्री से निकालने पर तुली हुई हैं। जिसके चलते सिडकुल की अधिकतर फैक्ट्रियों में आयेदिन श्रमिक धरना प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। यह फैक्ट्रियां अपने ही वायदों और घोषणाओं से मुकर रही हैं।
श्रमिकों का कहना है कि सिडकुल की तमाम ऐसी फैक्ट्रियां हैं जिनमें श्रम कानूनों की पूरी तरह से अनदेखी की जा रही है। ऐसे मामलों में प्रशासन भी फैक्ट्री प्रबंधकों का ही पक्ष लेता है। जिसके चलते श्रमिक शोषण दर शोषण का शिकार होने को विवश हैं।
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