वन विभाग ने 22 हेक्टेयर भूमि खाली कराई, 18 गुज्जर परिवारों को किया बेदखल



वन विभाग ने 22 हेक्टेयर भूमि खाली कराई, 18 गुज्जर परिवारों को किया बेदखल

रामनगर। नैनीताल जिले में रामनगर के आमपोखरा रेंज के तुमड़िया खत्ता में वन गुर्जरों की ओर से कब्जाई गई भूमि को खाली कराया गया। भारी फोर्स की मौजूदगी में 25 हेक्टेयर वन भूमि पर विभाग ने कब्जा लिया।
तराई पश्चिमी वन प्रभाग रामनगर के आमपोखरा रेंज के तुमड़िया खत्ता में वन गुर्जरों की ओर से कब्जाई गई भूमि को खाली कराया गया। भारी फोर्स की मौजूदगी में 25 हेक्टेयर वन भूमि पर विभाग ने कब्जा लिया।
जानकारी के अनुसार मालधनचौड़ के तुमड़िया खत्ता में वन गुर्जरों के 18 परिवार रहते है। वन गुर्जरों ने आसपास की वन भूमि पर अतिक्रमण कर उसमें खेती करना शुरू कर दिया था। वन विभाग की ओर से वन गुर्जरों को वन भूमि खाली कराने के लिए कहा गया था लेकिन वे हटने को तैयार नहीं थे।
बृहस्पतिवार सुबह एसडीओ जसपुर संदीप गिरी, एसडीओ रामनगर मनीष जोशी, एसडीओ एसओजी किरन शाह ग्वासीकोटी, रेंजर आमपोखरा पूरन सिंह खनायत वनकर्मियों की टीम के साथ मौके पर पहुंचे। इसके अलावा तहसीलदार मनीषा मारकाना, एसएसआई प्रथम मोहम्मद युनूस, मालधन चौकी प्रभारी धमेंद्र कुमार सहित पुलिस टीम भी पहुंची।भारी फोर्स को देखते हुए वन गुर्जरों की ओर से विरोध नहीं किया गया।
वन रेंजर आमपोखरा पूरन सिंह ने बताया कि जेसीबी की मदद से खाई खोदी गई है। 25 हेक्टेयर वन भूमि को खाली करा लिया है। दोबारा अतिक्रमण नहीं करने की चेतावनी दी गई है।वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि तराई पश्चिमी वन प्रभाग में अतिक्रमण चिन्हित कर उसे तोड़ा जा सकता है। वन भूमि पर अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
वहीं दूसरी ओर बेदखली झेल रहे परिवारों ने इसे अन्याय और पक्षपात करार दिया। सफी नामक गुज्जर ने आरोप लगाते हुए कहा कि पूरे प्रदेश में हजारों लोग फॉरेस्ट की जमीन पर बसे हुए हैं। मगर टारगेट सिर्फ उन्हें ही किया जा रहा है। कंजरवेटर के बाद अब हाईकोर्ट में केस दायर किया गया है। हमारा केस 20 मई को हाईकोर्ट में फाइल हो चुका है। बावजूद इसके वन विभाग ने कार्रवाई कर दी।
गुज्जर सफी ने कहा कि हम लगातार विभाग से अनुरोध कर रहे थे कि हमारी बात सुनी जाए। लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। हमारी अपील कोर्ट में लंबित है और विभाग ने नियमों की अनदेखी करते हुए हमें उजाड़ दिया।
इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मुनीष अग्रवाल का कहना है कि यह पूरा इलाका वनाधिकार कानून के अंतर्गत आता है। यहां के लोगों ने व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों तरह के दावे कोर्ट में लगाए हुए हैं। ऐसे में जब तक उन दावों का निस्तारण नहीं हो जाता, तब तक किसी भी प्रकार की बेदखली गैरकानूनी मानी जायेगी।
उनका कहना है कि यह मामला केवल जमीन या कब्जे का नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकारों और न्यायिक प्रक्रिया के पालन का भी है। लोगों का आक्रोश इस बात को लेकर है कि कानून के स्पष्ट नियम होने के बावजूद कार्रवाई जल्दबाजी में की गई और उनका पक्ष सुना नहीं गया।
इधर वन विभाग का कहना है कि उक्त भूमि वन विभाग की है। उस पर किसी भी तरह का कब्जा अवैध है। विभाग ने अपने स्तर पर पूरी प्रक्रिया का पालन किया और न्यायालय में पेश दस्तावेजों की समीक्षा के बाद ही अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की गई है।
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